कालिंजर किले का इतिहास और अन्य महत्वपूर्ण जानकारी

 कालिंजर दुर्ग


Kalinjar Fort



कालिंजर दुर्ग, उत्तर प्रदेश के बांदा जिले में, विंध्य पर्वत पर खड़ा है। ये भारत के सबसे बड़े और अनोखे दुर्गों में से एक हैं। यह खजुराहो से लगभग 97.7 किलोमीटर की दूरी पर स्थित हैं।  इसके अंदर कई प्राचीन मन्दिर हैं, जिनमें कुछ तीसरी से पाँचवीं सदी के हैं। वहाँ का शिव मंदिर भी बहुत प्रसिद्ध है, लोग कहते हैं कि भगवान शिव ने यहाँ अपनी तपस्या की थी। यहाँ का कार्तिक मेला भी बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है।

प्राचीन काल में, यह दुर्ग जेजाकभुक्ति (जयशक्ति चन्देल) साम्राज्य के अधीन था। बाद में, इसे चन्देल राजपूतों ने अपने अधीन कर लिया फिर सोलंकियों के अधीन आया। इस दौरान, कई महान शासकों ने इस पर हमला किया, परंतु उन्हें इस पर विजय नहीं मिली। कालिंजर विजय अभियान के दौरान ही, शेरशाह की मौत हो गई थी। मुगल शासनकाल में, इसे बादशाह अकबर ने अपने अधीन किया। इसके बाद, छत्रसाल बुन्देला ने मुगलों से इसे आज़ाद कराया। वर्तमान में, यह दुर्ग भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण विभाग के अधिकार और अनुरक्षण में है। यह बहुत ही शानदार और अद्वितीय किला है। 

कालिंजर किले का इतिहास 


कालिंजर दुर्ग का इतिहास बहुत विविध और रोचक है। यह दुर्ग भारतीय इतिहास के विभिन्न कालों में कई महत्वपूर्ण घटनाओं का साक्षी रहा है।

चन्देल राजवंश के काल में, कालिंजर दुर्ग को बहुत महत्व दिया गया था। यह दुर्ग चन्देल शासकों के राजनैतिक और सांस्कृतिक केंद्र के रूप में विशेष रूप से महत्वपूर्ण था। चन्देल शासकों के लिए ये किला इतना महत्वपूर्ण था की उन्होंने इस किले की उपाधि दी थी  "कालिंजराधिपति" या "कालिंजर के अधिपति" के रूप में । इसके अलावा, इस दुर्ग का ऐतिहासिक महत्व युद्धों और आक्रमणों में भी है, जिसमें विभिन्न राजवंशों के हिन्दू और मुस्लिम शासकों द्वारा आक्रमण शामिल हैं।

कालिंजर दुर्ग के इतिहास में मुगल साम्राज्य, शेरशाह सूरी के समय का आक्रमण, और ब्रिटिश शासन के दौरान के घटनाक्रम भी शामिल हैं। यह दुर्ग बहुत सारी युद्धों और आक्रमणों का विषय रहा है, जिसमें कई शासकों ने इसे जीतने का प्रयास किया है, परंतु केवल कुछ ही लोगों को सफलता मिली।

आज, कालिंजर दुर्ग भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महत्वपूर्ण स्मृतियों में से एक है, जब यह दुर्ग ब्रिटिश शासन के खिलाफ लड़ाई का केंद्र बन गया था। इसके उपरांत, यह दुर्ग भारत सरकार के नियंत्रण में आ गया है और अब एक प्रमुख पर्यटन स्थल के रूप में माना जाता है।

पुराण और साहित्यिक महत्व 


कालिंजर का पौराणिक महत्व विभिन्न युगों में उसके विविध नामों और घटनाओं के माध्यम से प्रकट होता है। सतयुग में इसे कीर्तिनगर के रूप में जाना जाता था, त्रेतायुग में मध्यगढ़, द्वापर युग में सिंहलगढ़ और कलियुग में कालिंजर के नाम से मशहूर हो गया। इसका पौराणिक संबंध भगवान शिव के नीलकंठ के साथ जुड़ा है, जिसे हिन्दू धर्म में अत्यधिक महत्त्व दिया जाता है। कालिंजर का पर्वतीय क्षेत्र अपने धार्मिक और आध्यात्मिक महत्त्व के लिए प्रसिद्ध है, और इसे एक पवित्र तीर्थ स्थल के रूप में माना जाता है। यहाँ के विविध पौराणिक कथाएं, ऐतिहासिक घटनाएं, और धार्मिक अनुभव भारतीय संस्कृति के महत्वपूर्ण हिस्से को प्रकट करती हैं और लोगों को आध्यात्मिकता की ओर प्रेरित करती हैं।


पद्म पुराण में इस क्षेत्र को "नवऊखल" बताया गया है

मत्स्य पुराण में इस क्षेत्र को अवन्तिका एवं अमरकंटक के साथ अविमुक्त क्षेत्र भी कहा गया है।

जैन धर्म के ग्रंथों तथा बौद्ध धर्म की जातक कथाओं में इसे कालगिरि कहा गया है। 

ब्रह्म पुराण: ब्रह्म पुराण में कालिंजर की महिमा वर्णित है और इसे विश्व का सबसे प्राचीन स्थल माना गया है।

विष्णु पुराण: विष्णु पुराण में भी कालिंजर के महत्त्वपूर्ण इतिहास का उल्लेख है।

रामायण: रामायण में भी कालिंजर का उल्लेख है, जहां श्रीराम ने कालिंजर क्षेत्र में अपने अधिकार को स्थापित किया था।

महाभारत: महाभारत में कालिंजर का उल्लेख है, जहां युधिष्ठिर ने अपने वनवास के दौरान इस क्षेत्र में ठहराव लिया था।
पद्म पुराण: पद्म पुराण में कालिंजर के बारे में विस्तृत वर्णन है, जो इसके महत्व को समझने में मदद करता है।

कालिंजर: ऐतिहासिक विरासत का अद्भुत संग्रह


कालिंजर एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक धरोहर है, जो अपने विविधता और समृद्धि के लिए प्रसिद्ध है। इस दुर्ग और इसके नीचे बसे कस्बे में कई प्राचीन मन्दिर, मूर्तियाँ, शिलालेख और गुफाएं मौजूद हैं, जो इसे ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण बनाते हैं। यहाँ पाए जाने वाले २० हजार वर्ष पुरानी शंख लिपि के अवशेषों में भगवान राम के कालिंजर आगमन का उल्लेख है, जो इस स्थान को धार्मिक महत्त्व देता है। इसके साथ ही, यहाँ की नौवीं शताब्दी की पांडुलिपियों में चंदेल-वंश काल का वर्णन मिलता है, जो इस इलाके के ऐतिहासिक महत्त्व को और भी बढ़ाता है। दुर्ग के अन्दर और बाहर उपलब्ध प्राचीन संरचनाओं को पुरातत्त्व विभाग ने संरक्षित किया है, जो इसे एक महत्वपूर्ण प्राचीन स्थल बनाता है।

कालिंजर किले के बारे में महत्वपूर्ण तथ्य 

  • यहां कार्तिक पूर्णिमा पर पांच दिन तक चलने वाला कतकी मेला लगता है। इस दौरान हजारों श्रद्धालुओं की भीड़ जमा होती है।
  • लोगों का ऐसा मानना है कि समुद्र मंथन से निकले विष को पीने के बाद भगवान शिव ने यहीं आकर तपस्या की थी।
  • मुगल बादशाह अकबर इस किले को जीतने में सफल रहा। उसने यह किला बीरबल को भेंट कर दिया। 
  • छत्रसाल बुंदेला ने मुगलों से बुंदेलखंड को आजाद कराया, तब से यह किला बुंदेलों के अधीन हो गया।
  • आजादी के बाद इसकी पहचान महत्वपूर्ण ऐतिहासिक धरोहर के रूप में की गई।
  • मौजूदा समय में यह भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के अधिकार और अनुरक्षण में है।

कालिंजर किले के प्राचीन नाम 


कालिंजर किले का महत्वपूर्ण स्थान भारतीय इतिहास में है, जिसे सतयुग में कीर्तिनगर , त्रेतायुग में मध्यगढ़ , द्वापरयुग में सिंहलगढ़ और कलियुग में कालिंजर नामों से जाना गया है। इसकी कुल ऊँचाई 108 फीट है, जिसे मध्यकालीन भारत का सर्वोत्तम दुर्ग माना जाता है। किले के अंदर गुप्त, प्रतिहार, और नागर स्थापत्य की कई शैलियां दिखाई देती हैं। इसके सात दरवाजे हैं, जिनमें सिंह द्वार, गणेश द्वार, चंडी द्वार, स्वर्गारोहण द्वार या बुद्धगढ़ द्वार, हनुमान द्वार, लाल द्वार, और नेमि द्वार शामिल हैं। इन दरवाजों के माध्यम से किले के अंदर की सुंदरता और ऐतिहासिक महत्व को अनुभव किया जा सकता है। इसके अलावा, किले में नेमिद्वार को महादेव द्वार भी कहते हैं, जो कालिंजर किले का एक और महत्वपूर्ण द्वार है।


नीलकण्ठ मंदिर कालिंजर


कालिंजर किले के पश्चिमी भाग में स्थित नीलकण्ठ मंदिर कालिंजर का धार्मिक और ऐतिहासिक अद्भुत स्थल है। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है और उसकी महत्ता और प्राचीनता का प्रतीक है। मंदिर के प्रवेशद्वार पर एक विशेषता है - परिमाद्र देव नामक चंदेल शासक द्वारा लिखी गई शिवस्तुति, जो मंदिर की महिमा को और बढ़ाती है। यहाँ की पूजा अर्चना में लीन चंदेल राजपूत बताते हैं कि शिवलिंग पर उकेरे गए भगवान शिव की मूर्ति के कण्ठ का क्षेत्र स्पर्श करने पर सदा ही मुलायम प्रतीत होता है। मंदिर के ऊपर एक प्राकृतिक स्रोत है, जिससे हमेशा शिवलिंग का अभिषेक होता रहता है। नीलकण्ठ मंदिर कालिंजर का एक अद्वितीय धार्मिक स्थल है जो ऐतिहासिक महत्ता के साथ लोकप्रिय है।

कालिंजर किले का अनुरक्षण एवं रख-रखाव


कालिंगेर किला, जो वर्तमान समय में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के अधीन है, मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र में स्थित है। यह ऐतिहासिक किला महत्वपूर्ण ऐतिहासिक और सांस्कृतिक स्मारकों में से एक है। सर्वेक्षण विभाग ने इसे संरक्षित करने के लिए कई पहलूओं पर काम किया है।

 सर्वेक्षण विभाग ने इस किले के ऐतिहासिक महत्व को ध्यान में रखते हुए इसे संरक्षित करने के लिए कई पहलूओं पर काम किया है। इसके अलावा, विभाग ने पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए हजारों मूर्तियों, अवशेषों, और शिलालेखों का अध्ययन और छायांकन किया है, और उन्हें संरक्षित किया गया है।

राजा अमान सिंह महल में नजर रखते हुए लगभग 1800 प्रतिमाओं के साथ-साथ उनके अवशेषों और शिलालेखों का अध्ययन और छायांकन कार्य पूरा हो चुका है। कालिंजर विकास संस्थान के संयोजक बी॰डी॰ गुप्त के अनुसार लगभग 1200 प्रतिमाओं का अध्ययन और छायांकन शेष है। इसके अलावा, मूर्तियों का रासायनिक उपचार और संरक्षण कार्य भी प्रगति पर है।

कालिंजर  किले का रक्षण और संरक्षण विभाग द्वारा बड़े पैमाने पर किया जा रहा है। इसके साथ ही, पर्यटन की दृष्टि से भी इसे विकसित किया जा रहा है, ताकि लोग इसे आसानी से देख सकें और उसका अनुभव कर सकें। यहाँ के तालाबों को ताजे जल से भरा जाता है, और घास और फूल के पोधो को भी सींचा जाता हैं।














 

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